कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिण: |
जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् || 51||
karmajaṃ buddhiyuktā hi phalaṃ tyaktvā manīṣiṇaḥ ।
janmabandhavinirmuktāḥ padaṃ gachChantyanāmayam ॥ 51 ॥
क्योंकि समबुद्धि से युक्त ज्ञानीजन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्यागकर जन्मरूप बंधन से मुक्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं|
Those individuals who have devoted their lives to the practice of KARMYOGA, they not only free themselves of the worries that accompany anticipation of results after performing certain actions, but also free themselves of all sins and achieve the supreme state of everlasting peace and happiness.
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति |
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च || 52||
yadā tē mōhakalilaṃ buddhirvyatitariṣyati ।
tadā gantāsi nirvēdaṃ śrōtavyasya śrutasya cha ॥ 52 ॥
जिस काल में तेरी बुद्धि मोहरूपी दलदल को भलीभाँति पार कर जाएगी, उस समय तू सुने हुए और सुनने में आने वाले इस लोक और परलोक संबंधी सभी भोगों से वैराग्य को प्राप्त हो जाएगा|
When you finally reach the state where your mind is free from all attachments and pleasures in life, your intellect will clear and will give you the ability to think logically, and wisely, whenever you need to.
तिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला |
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि || 53||
śrutivipratipannā tē yadā sthāsyati niśchalā ।
samādhāvachalā buddhistadā yōgamavāpsyasi ॥ 53 ॥
भाँति-भाँति के वचनों को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्धि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जाएगी, तब तू योग को प्राप्त हो जाएगा अर्थात तेरा परमात्मा से नित्य संयोग हो जाएगा|
Your intellect, O ARJUNA, will then allow you to distinguish between the real and the unreal in life. You will no longer have conflicts about opinions of life’s many aspects and characteristics. You will know what is of importance and of no importance. Finally, you will reach the state where you will have achieved KARMYOGA, a state of long-lasting peace and happiness.
अर्जुन उवाच |
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव |
स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् || 54||
Arjuna Uvacha।
sthitaprajñasya kā bhāṣā samādhisthasya kēśava ।
sthitadhīḥ kiṃ prabhāṣēta kimāsīta vrajēta kim ॥ 54 ॥
अर्जुन बोले– हे केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिरबुद्धि पुरुष का क्या लक्षण है? वह स्थिरबुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?
Arjuna asked the Lord:Dear KESHAVA (Krishna), what are the characteristics of a man who is very wise, has a firm intellect and is placed or engrossed in a superconscious state? How does this type of person speak, sit and walk?
श्रीभगवानुवाच |
प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |
आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || 55||
Sri Bhagavan Uvacha।
prajahāti yadā kāmānsarvānpārtha manōgatān ।
ātmanyēvātmanā tuṣṭaḥ sthitaprajñastadōchyatē ॥ 55 ॥
श्री भगवान् बोले– हे अर्जुन! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भलीभाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है|
The Divine Lord Krishna replied: O ARJUNA, one is said to have steady wisdom if he completely frees himself from desires of the mind and heart and is realistically satisfied within himself, no more having the longing for material pleasures.