वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् |
कथं स पुरुष: पार्थ कं घातयति हन्ति कम् || 21||
vēdāvināśinaṃ nityaṃ ya ēnamajamavyayam ।
athaṃ sa puruṣaḥ pārtha kaṃ ghātayati hanti kam ॥ 21॥
हे पृथापुत्र अर्जुन ! जो पुरुष इस आत्माको नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है ?
ARJUNA, he who knows the Soul to be eternal, indestructible, permanent unborn, and endless, that person can neither kill nor be killed.
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही || 22||
vāsāṃsi jīrṇāni yathā vihāya navāni gṛhṇāti narōparāṇi।
tathā śarīrāṇi vihāya jīrṇānyanyāni saṃyāti navāni dēhī ॥22॥
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रोंको त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरोंको त्यागकर दूसरे नये शरीरोंको प्राप्त होता है|
The Blessed Lord said: Just as a person gets rid of old clothing and replaces the old clothing with new ones, similarly, the soul changes from one body to a new body when its body has become old worn out and has stopped functioning.
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: ||23||
nainaṃ Chindanti śastrāṇi nainaṃ dahati pāvakaḥ ।
na chainaṃ klēdayantyāpō na śōṣayati mārutaḥ ॥23॥
इस आत्माको शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता|
The Soul cannot be cut by weapons, burnt by fire, absorbed by air, nor can water wet the Soul.
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च |
नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन: ||24||
achChēdyōyamadāhyōyamaklēdyōśōṣya ēva cha ।
nityaḥ sarvagataḥ sthāṇurachalōyaṃ sanātanaḥ ॥24॥
क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसन्देह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, रहनेवाला और सनातन है|
The Soul is eternal, everlasting. It cannot be destroyed, broken or burnt; it cannot become wet nor become dried. The Soul is the most stable thing in the universe, it is immovable and present throughout the universe.
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते |
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ||25||
avyaktōyamachintyōyamavikāryōyamuchyatē।
tasmādēvaṃ viditvainaṃ nānuśōchitumarhasi॥25॥
यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है। इससे हे अर्जुन! इस आत्माको उपर्युक्त प्रकार से जानकर तू शोक करनेको योग्य नहीं है अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है
The Soul cannot be seen, With this mind, dear changed by any means. With this mind, dear ARJUNA, one should never grieve.