अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय: |
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर: ||41||
adharmābhibhavāt kṛiṣhṇa praduṣhyanti kula-striyaḥ
strīṣhu duṣhṭāsu vārṣhṇeya jāyate varṇa-saṅkaraḥ ||41||
हे कृष्ण ! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियां अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय ! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है ।
O KRISHNA, with the growth of evil in a family, the family women, become impure and evil, and sinning with those of other castes would follow.
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च |
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया: ||42||
saṅkaro narakāyaiva kula-ghnānāṁ kulasya cha
patanti pitaro hy eṣhāṁ lupta-piṇḍodaka-kriyāḥ ||42||
वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने के लिये ही होता है । लुप्त हुई पिण्ड और जलकी क्रिया वाले अर्थात् श्राद्ब और तर्पण से वंचित इनके पितरलोग भी अधो गति को प्राप्त होते हैं|
By the mixture of castes, families will breed more family destroyers; being deprived of food and water, their ancestors will also fall from heaven.
दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकै: |
उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता: ||43||
doṣhair etaiḥ kula-ghnānāṁ varṇa-saṅkara-kārakaiḥ
utsādyante jāti-dharmāḥ kula-dharmāśh cha śhāśhvatāḥ ||43||
इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल धर्म और जाती-धर्म नष्ट हो जाते हैं|
The everlasting traditions, customs and principles of a caste are destroyed when different castes join together and create mixed-blood generations. This leads to confusion of a caste’s customs.
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन |
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ||44||
utsanna-kula-dharmāṇāṁ manuṣhyāṇāṁ janārdana
narake ‘niyataṁ vāso bhavatītyanuśhuśhruma ||44||
हे जनार्दन ! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है, ऐसे मनुष्यों का अनिश्चित काल तक नरक में वास होता है, ऐसा हम सुनते आये हैं।
It has been heard, O JANARDHANA (Krishna) that hell is the permanent home for those men whose families’ religious practices have been broken and destroyed.
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् |
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यता: ||45||
aho bata mahat pāpaṁ kartuṁ vyavasitā vayam
yad rājya-sukha-lobhena hantuṁ sva-janam udyatāḥ ||45||
हा ! शोक ! हमलोग बुद्भिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उधत हो गये हैं|
Moreover, it is a great shame, that knowing and understanding everything, we are still ready to commit such a great sin of killing our kinsmen, just because of greed for kingdom and pleasures.
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणय: |
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ||46||
yadi mām apratīkāram aśhastraṁ śhastra-pāṇayaḥ
dhārtarāṣhṭrā raṇe hanyus tan me kṣhemataraṁ bhavet ||46||
यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करने वाले को शस्त्र हाथ में लिये हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डालें तो वह मारना भी मेरे लिए अधिक कल्याणकारक होगा|
I think it would be better for me if the sons of DHRTARASHTRA slay me, with their weapons while I remain unarmed and unwilling to fight back
सञ्जय उवाच |
एवमुक्त्वार्जुन: सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् |
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस: ||47||
Sanjaya Uvacha |
evam uktvārjunaḥ saṅkhye rathopastha upāviśhat
visṛijya sa-śharaṁ chāpaṁ śhoka-saṁvigna-mānasaḥ ||47||
संजय बोले —– रणभूमि में शोकसे उद्भिग्नमन वाले अर्जुन इस प्रकार कहकर, बाण सहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गये ।
Sanjaya said: Having said this, ARJUNA, still extremely sad and confused sat on the seat of this chariot throwing away his bow and arrows.