Shloka 1-5
श्रीभगवानुवाच |इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् |विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् || 1|| Sribhagavan Uvacha।imaṃ vivasvatē yōgaṃ prōktavānahamavyayam ।vivasvānmanavē prāha manurikṣvākavēbravīt ॥ 1 ॥ श्रीभगवान् बोले– मैंने इस अविनाशी योगको सूर्यसे कहा थ; सूर्यने अपने पुत्र वैवस्वत मनुसे कहा और मनुने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकुसे कहा| Lord Krishna continued: I taught this immortal, everlasting “Yoga faction” (Karmayoga) to the […]
Shloka 6-10
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् |प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया || 6|| ajōpi sannavyayātmā bhūtānāmīśvarōpi san ।prakṛtiṃ svāmadhiṣṭhāya sambhavāmyātmamāyayā ॥ 6 ॥ मैं अजन्मा और अविनाशीस्वरूप होते हुए भी तथा समस्त प्राणियोंका ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृतिको अधीन करके अपनी योगमायासे प्रकट होता हूँ| O Arjuna, although birth and death do not exist for Me, since I […]