निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव |
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ||31||
nimittāni cha paśhyāmi viparītāni keśhava
na cha śhreyo ’nupaśhyāmi hatvā sva-janam āhave ||31||
हे केशव ! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता ।
I cannot see any good in slaughtering and killing my friends and relatives in battle. O KRISHNA, I have no use nor desire for victory, empire or even materialistic pleasures.
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च |
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा ||32||
na kāṅkṣhe vijayaṁ kṛiṣhṇa na cha rājyaṁ sukhāni cha
kiṁ no rājyena govinda kiṁ bhogair jīvitena vā ||32||
हे कृष्ण ! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही । हे गोविन्द ! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है ?
O GOVINDA, (Krishna), what in the use of a kindgom, enjoyment or even life?
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगा: सुखानि च |
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च ||33||
yeṣhām arthe kāṅkṣhitaṁ no rājyaṁ bhogāḥ sukhāni cha
ta ime ’vasthitā yuddhe prāṇāṁs tyaktvā dhanāni cha ||33||
हमें जिनके लिये राज्य, भोग और सुखादिं अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्याग कर युद्ध में खड़े हैं ।
Those whom we seek these pleasures from (the enjoyment of kingdom), are standing before us staking their lives and property, possessions which I have no desire for.
आचार्या: पितर: पुत्रास्तथैव च पितामहा: |
मातुला: श्वशुरा: पौत्रा: श्याला: सम्बन्धिनस्तथा ||34||
āchāryāḥ pitaraḥ putrās tathaiva cha pitāmahāḥ
mātulāḥ śhvaśhurāḥ pautrāḥ śhyālāḥ sambandhinas tathā ||34||
गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी प्रकार दादे, मामे, ससुर, पौत्र, साले तथा और भी सम्बन्धी लोग हैं ।
O Lord KRISHNA, I do not want to kill my teachers, uncles, friends, fathers-in-law, grandsons, brothers-in-law, and other relatives and well-wishers.
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन |
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते ||35||
etān na hantum ichchhāmi ghnato ’pi madhusūdana |
api trailokya-rājyasya hetoḥ kiṁ nu mahī-kṛite ||35||
हे मधुसूदन ! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है ?
Arjuna spoke to the Lord Madhusudhana (Lord Krishna): I could not slay (kill) my relatives even if I had to give my own life away. I could not slay them even for domination of the three worlds; how could I slay them for domination of this earth.