Sankhya Yog

Shloka 1-5

सञ्जय उवाच |तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् |विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन: ||1|| Sanjaya Uvacha |taṃ tathā kṛpayāviṣṭamaśrupūrṇākulēkṣaṇam ।viṣīdantamidaṃ vākyamuvācha madhusūdanaḥ ॥1॥ संजय बोले—उस प्रकार करुणासे व्याप्त और आँसुओंसे पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रोंवाले शोकयुक्त उस अर्जुनके प्रति भगवान् मधुसूदनने यह वचन कहा | Sanjay recounted: MADHUSUDANA (Lord Krishna) then spoke in his divine voice unto ARJUNA, who was terribly upset […]

Shloka 6-10

न चैतद्विद्म: कतरन्नो गरीयोयद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: |यानेव हत्वा न जिजीविषामस्तेऽवस्थिता: प्रमुखे धार्तराष्ट्रा: ||6|| na chaitadvidmaḥ katarannō garīyō yadvā jayēma yadi vā nō jayēyuḥ।yānēva hatvā na jijīviṣāmastēvasthitāḥ pramukhē dhārtarāṣṭrāḥ ॥6॥ हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिये युद्ध करना और न करना—इन दोनोंमेंसे कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि […]

Shloka 11-15

श्रीभगवानुवाच |अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: ||11|| Sri Bhagavan Uvacha |aśōchyānanvaśōchastvaṃ prajñāvādāṃścha bhāṣasē ।gatāsūnagatāsūṃścha nānuśōchanti paṇḍitāḥ ॥11॥ श्रीभगवान् बोले—हे अर्जुन ! तू न शोक करनेयोग्य मनुष्योंके लिये शोक करता है और पण्डितोंके से वचनोंको कहता है; परंतु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गये हैं उनके लिये भी पण्डितजन […]

Shloka 16-20

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत: |उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभि: ||16|| nāsatō vidyatē bhāvō nābhāvō vidyatē sataḥ ।ubhayōrapi dṛṣṭōntastvanayōstattvadarśibhiḥ ||16|| असत् वस्तुकी तो सत्ता नहीं है और सत्का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनोंका ही तत्त्व तत्त्वज्ञानी पुरुषोंद्वारा देखा गया है The Blessed Lord stated:The unreal does not exist and the real always exists. Those with […]

Shloka 21-25

वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् |कथं स पुरुष: पार्थ कं घातयति हन्ति कम् || 21|| vēdāvināśinaṃ nityaṃ ya ēnamajamavyayam ।athaṃ sa puruṣaḥ pārtha kaṃ ghātayati hanti kam ॥ 21॥ हे पृथापुत्र अर्जुन ! जो पुरुष इस आत्माको नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है ? […]

Shloka 26-30

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् |तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि || 26|| atha chainaṃ nityajātaṃ nityaṃ vā manyasē mṛtam ।tathāpi tvaṃ mahābāhō naivaṃ śōchitumarhasi ॥ 26 ॥ किन्तु यदि तू इस आत्माको सदा जन्मनेवाला तू तथा सदा मरनेवाला मानता हो, तो भी हे महाबाहो ! तू इस प्रकार शोक करनेको योग्य नहीं है| […]

Shloka 31-35

स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि |धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ||31|| svadharmamapi chāvēkṣya na vikampitumarhasi ।dharmyāddhi yuddhāchChrēyōnyatkṣatriyasya na vidyatē ॥31॥ तथा अपने धर्मको देखकर भी तू भय करनेयोग्य नहीं है अर्थात् तुझे भय नहीं करना चाहिये; क्योंकि क्षत्रियके लिये धर्मयुक्त युद्धसे बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है| Looking upon your duty, ARJUNA, as a Kshatriya (warrior), […]

Shloka 36-40

अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिता: |निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दु:खतरं नु किम् ||36|| avāchyavādāṃścha bahūnvadiṣyanti tavāhitāḥ ।nindantastava sāmarthyaṃ tatō duḥkhataraṃ nu kim ॥36॥ तेरे वैरीलोग तेरे सामर्थ्यकी निन्दा करते हुए तुझे बहुत-से न कहने योग्य वचन भी कहेंगे; उससे अधिक दुःख और क्या होगा ? You will experience tremendous pain when your enemies laugh at your lack of […]

Shloka 41-45

व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन |बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् || 41|| vyavasāyātmikā buddhirēkēha kurunandana ।bahuśākhā hyanantāścha buddhayōvyavasāyinām ॥ 41 ॥ हे अर्जुन! इस कर्मयोगमें निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है; किन्तु अस्थिर विचारवाले विवेकहीन सकाम मनुष्योंकी बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदोंवाली और अनन्त होती हैं| Those with a firm mind, O ARJUNA, are decisive about everything. Those whose […]

Shloka 46-50

यावानर्थ उदपाने सर्वत: सम्प्लुतोदके |तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानत: || 46|| yāvānartha udapānē sarvataḥ samplutōdakē ।tāvānsarvēṣu vēdēṣu brāhmaṇasya vijānataḥ ॥ 46 ॥ सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है, ब्रह्म को तत्व से जानने वाले ब्राह्मण का समस्त वेदों में उतना ही प्रयोजन रह […]

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