Karm Sanyas Yog - TATVA GYAAN

Shloka 1-5

अर्जुन उवाच |संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि |यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् || 1|| Arjuna Uvacha |sannyāsaṁ karmaṇāṁ kṛiṣhṇa punar yogaṁ cha śhansasiyach chhreya etayor ekaṁ tan me brūhi su-niśhchitam || 1|| अर्जुन बोले– हे कृष्ण ! आप कर्मोंके संन्यासकी और फिर कर्मयोगकी प्रशंसा करते हैं । इसलिये इन दोनोंमेंसे जो एक मेरे लिये […]

Shloka 6-11

संन्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: |योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति || 6|| sannyāsas tu mahā-bāho duḥkham āptum ayogataḥyoga-yukto munir brahma na chireṇādhigachchhati || 6|| परन्तु हे अर्जुन ! कर्मयोगके बिना संन्यास अर्थात् मन, इन्द्रिय और शरीरद्वारा होनेवाले सम्पूर्ण कर्मोंमें कर्तापनका त्याग प्राप्त होना कठिन है और भगवत्स्वरूपको मनन करनेवाला कर्मयोगी परब्रह्म परमात्माको शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है| The […]

Shloka 12-16

युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् |अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते || 12|| yuktaḥ karma-phalaṁ tyaktvā śhāntim āpnoti naiṣhṭhikīmayuktaḥ kāma-kāreṇa phale sakto nibadhyate || 12|| कर्मयोगी कर्मोंके कर्मोंके फलका त्याग करके भगवत्प्राप्तिरूप शान्तिको प्राप्त होता है और सकाम पुरुष कामनाकी प्रेरणासे फलमें आसक्त होकर बँधता है| When a Yogi has reached a state of true self-realization by […]

Shloka 17-21

तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: |गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषा: || 17|| tad-buddhayas tad-ātmānas tan-niṣhṭhās tat-parāyaṇāḥgachchhantyapunar-āvṛittiṁ jñāna-nirdhūta-kalmaṣhāḥ || 17|| जिनका मन तद्रूप हो रहा है, जिनकी बुद्धि तद्रूप हो रही है और सच्चिदानन्दघन परमात्मामें ही जिनकी निरन्तर एकीभावसे स्थिति है, ऐसे तत्परायण पुरुष ज्ञानके द्वारा पापरहित होकर अपुनरावृत्तिको अर्थात् परमगतिको प्राप्त होते हैं| The Lord spoke: O Arjuna, total liberation and everlasting peace […]

Shloka 22-29

ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते |आद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध: || 22|| ye hi sansparśha-jā bhogā duḥkha-yonaya eva teādyantavantaḥ kaunteya na teṣhu ramate budhaḥ || 22|| जो ये इन्द्रिय तथा विषयोंके संयोगसे उत्पन्न होनेवाले सब भोग हैं, यद्यपि विषयी पुरुषोंको सुखरूप भासते हैं तो भी दुःखके ही हेतु हैं और आदि अन्तवाले अर्थात् […]

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