Shloka 1-5
अर्जुन उवाच |किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम |अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते || 1|| Arjuna Uvacha ।kiṃ tadbrahma kimadhyātmaṃ kiṃ karma puruṣōttama ।adhibhūtaṃ cha kiṃ prōktamadhidaivaṃ kimuchyatē ॥ 1 ॥ अर्जुनने कहा – हे पुरुषोत्तम ! वह ब्रह्म क्या है ? – अध्यात्म क्या है ? कर्म क्या है ? अधिभूत नाम क्या कहा गया […]
Shloka 6-10
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् |तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित: || 6|| yaṃ yaṃ vāpi smaranbhāvaṃ tyajatyantē kalēvaram ।taṃ tamēvaiti kauntēya sadā tadbhāvabhāvitaḥ ॥ 6 ॥ हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! यह मनुष्य अन्तकालमें जिस जिस भी भावको स्मरण करता हुआ शरीरका त्याग करता है, उस उसको ही प्राप्त होता है; क्योंकि वह सदा उसी […]
Shloka 11-16
यदक्षरं वेदविदो वदन्तिविशन्ति यद्यतयो वीतरागा: |यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्तितत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये || 11|| yadakṣaraṃ vēdavidō vadanti viśanti yadyatayō vītarāgāḥ।yadichChantō brahmacharyaṃ charanti tattē padaṃ saṅgrahēṇa pravakṣyē ॥ 11 ॥ वेदके जाननेवाले विद्वान् जिस सच्चिदानन्दघनरूप परमपदको अविनाशी कहते हैं, आसक्तिरहित यत्नशील संन्यासी महात्माजन जिसमें प्रवेश करते हैं और जिस परमपदको चाहनेवाले ब्रह्मचारी लोग ब्रह्मचर्यका आचरण करते हैं, […]
Shloka 17-21
सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदु: |रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जना: || 17|| sahasrayugaparyantamaharyadbrahmaṇō viduḥ ।rātriṃ yugasahasrāntāṃ tēhōrātravidō janāḥ ॥ 17 ॥ ब्रह्माका जो एक दिन है, उसको एक हजार चतुर्युगीतककी अवधिवाला और रात्रिको भी एक हजार चतुर्युगीतककी अवधिवाली जो पुरुष तत्त्वसे जानते हैं, वे योगीजन कालके तत्त्वको जाननेवाले हैं| Those who knows that Brahma’s (the Supreme Creator) one day […]
Shloka 22-28
पुरुष: स पर: पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया |यस्यान्त:स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् || 22|| puruṣaḥ sa paraḥ pārtha bhaktyā labhyastvananyayā ।yasyāntaḥsthāni bhūtāni yēna sarvamidaṃ tatam ॥ 22 ॥ हे पार्थ जिस परमात्माके अन्तर्गत सर्वभूत हैं और जिस सच्चिदानन्दघन परमात्मासे यह समस्त जगत् परिपूर्ण है, वह सनातन अव्यक्त परम पुरुष तो अनन्य’ भक्तिसे ही प्राप्त होने योग्य […]