Chapter 17 - Shraddha Traya Vibhag Yog  - TATVA GYAAN

Shloka 1-5

अर्जुन उवाच |ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विता: |तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तम: || 1|| Arjuna Uvachaye śhāstra-vidhim utsṛijya yajante śhraddhayānvitāḥteṣhāṁ niṣhṭhā tu kā kṛiṣhṇa sattvam āho rajas tamaḥ|| 1|| अर्जुन बोले —–हे कृष्ण ! जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्याग कर श्रद्बा से युक्त्त हुए देवादि का पूजन करते हैं, उनकी स्थिति फिर कौन […]

Shloka 6-10

कर्षयन्त: शरीरस्थं भूतग्राममचेतस: |मां चैवान्त:शरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्चयान् || 6|| karṣhayantaḥ śharīra-sthaṁ bhūta-grāmam achetasaḥmāṁ chaivāntaḥ śharīra-sthaṁ tān viddhy āsura-niśhchayān|| 6|| जो शरीर रूप से स्थित भूत समुदाय को और अन्त:करण में स्थित मुझ परमात्मा को भी कृश करने वाले हैं, उन अज्ञानियों को तू असुर स्वभाव वाले जान | and those who foolishly suppress the pure and natural […]

Shloka 11-15

अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते |यष्टव्यमेवेति मन: समाधाय स सात्त्विक: || 11|| aphalākāṅkṣhibhir yajño vidhi-driṣhṭo ya ijyateyaṣhṭavyam eveti manaḥ samādhāya sa sāttvikaḥ|| 11|| जो शास्त्र विधि से नियत, यज्ञ करना ही कर्तव्य है —- इस प्रकार मन को समाधान करके, फल न चाहने वाले पुरुषों द्वारा किया जाता है, वह सात्विक है | A pure sacrifice is […]

Shloka 16-20

मन: प्रसाद: सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रह: |भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते || 16|| manaḥ-prasādaḥ saumyatvaṁ maunam ātma-vinigrahaḥbhāva-sanśhuddhir ity etat tapo mānasam uchyate|| 16|| मन की प्रसन्नता, शान्त भाव, भगवच्चिन्तन करने का स्वभाव, मन का निग्रह, और अन्त:करण के भावों की भली भाँति पवित्रता —-इस प्रकार यह मन सम्बन्धी तप कहा जाता है| Peace and tranquility of the mind, harmony and […]

Shloka 21-28

यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुन: |दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम् || 21|| yat tu pratyupakārārthaṁ phalam uddiśhya vā punaḥdīyate cha parikliṣhṭaṁ tad dānaṁ rājasaṁ smṛitam || 21|| किंतु जो दान क्लेश पूर्वक तथा प्रत्युपकार के  प्रयोजन से अथवा फल को दृष्टि में रख कर फिर दिया जाता है, वह दान राजस कहा गया है| […]

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