Shloka 1-5
श्रीभगवानुवाच |अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थिति: |दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम् || 1|| Shri Bhagavan Uvachaabhayaṁ sattva-sanśhuddhir jñāna-yoga-vyavasthitiḥdānaṁ damaśh cha yajñaśh cha svādhyāyas tapa ārjavam || 1|| श्रीभगवान् बोले —–भय का सर्वथा अभाव, अन्त:करण की पूर्ण निर्मलता, तत्व ज्ञान के लिये ध्यान योग में निरन्तर दृढ. स्थिति और सात्विक दान, इन्द्रियों का दमन, भगवान्, देवता और गुरुजनों की […]
Shloka 6-10
द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च |दैवो विस्तरश: प्रोक्त आसुरं पार्थ मे शृणु || 6|| dvau bhūta-sargau loke ’smin daiva āsura eva chadaivo vistaraśhaḥ prokta āsuraṁ pārtha me śhṛiṇu|| 6|| हे अर्जुन ! इस लोक में भूतों की सृष्टि यानी मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है, एक तो दैवी प्रकृति वाला, दूसरा आसुरी प्रकृति […]
Shloka 11-16
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिता: |कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिता: || 11|| chintām aparimeyāṁ cha pralayāntām upāśhritāḥkāmopabhoga-paramā etāvad iti niśhchitāḥ|| 11|| तथा वे मृत्यु पर्यन्त रहने वाली असंख्य चिन्ताओं का आश्रय लेने वाले, विषय भोगों के भोगने में तत्पर रहने वाले और ‘इतना ही सुख है’ इस प्रकार मानने वाले होते हैं | These evil-doers become obsessed with their several […]
Shloka 17-24
आत्मसम्भाविता: स्तब्धा धनमानमदान्विता: |यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम् || 17|| ātma-sambhāvitāḥ stabdhā dhana-māna-madānvitāḥyajante nāma-yajñais te dambhenāvidhi-pūrvakam|| 17|| वे अपने आपको ही श्रेष्ट मानने वाले घमण्डी पुरुष धन और मान के मद से युक्त्त होकर केवल नाम मात्र के यज्ञों द्वारा पाखण्ड से शास्त्र विधि रहित भजन करते हैं | In their moments of extreme pride and glory, when […]