Chapter 15 - Pursotam Yog  - TATVA GYAAN

Shloka 1-5

श्रीभगवानुवाच |ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् |छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् || 1|| Shri Bhagavan Uvachaūrdhva-mūlam adhaḥ-śhākham aśhvatthaṁ prāhur avyayamchhandānsi yasya parṇāni yas taṁ veda sa veda-vit|| 1|| श्री भगवान् बोले —–आदिपुरुषपरमेश्वर रूप मूल वाले और ब्रह्मा रूप मुख्य शाखा वाले जिस संसार रूप पीपल के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं, तथा वेद जिसक पत्ते कहे गये […]

Shloka 6-10

न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: |यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम || 6|| na tad bhāsayate sūryo na śhaśhāṅko na pāvakaḥyad gatvā na nivartante tad dhāma paramaṁ mama|| 6|| जिस परम पद को प्राप्त होकर मनुष्य लौट कर संसार में नहीं आते, उस स्वयं प्रकाश परम पद को न सूर्य प्रकाशित कर सकता […]

Shloka 11-15

यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् |यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतस: || 11|| yatanto yoginaśh chainaṁ paśhyanty ātmany avasthitamyatanto ‘py akṛitātmāno nainaṁ paśhyanty achetasaḥ|| 11|| यत्न करने वाले योगी जन भी अपने ह्रदय में स्थित इस आत्मा को तत्व से जानते हैं ; किंतु जिन्होंने अपने अन्त:करण को शुद्ध नहीं किया है, ऐसे अज्ञानी जन तो यत्न करते रहने पर […]

Shloka 16-20

द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च |क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते || 16|| dvāv imau puruṣhau loke kṣharaśh chākṣhara eva chakṣharaḥ sarvāṇi bhūtāni kūṭa-stho ’kṣhara uchyate|| 16|| इस संसार में नाशवान् और अविनाशी भी ये दो प्रकार के पुरुष हैं । इनमे सम्पूर्ण भूत प्राणियों के शरीर तो नाशवान् और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है […]

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