Chapter 14 - Guna Traya Vibhag Yog - TATVA GYAAN

Shloka 1-5

श्रीभगवानुवाच |परं भूय: प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् |यज्ज्ञात्वा मुनय: सर्वे परां सिद्धिमितो गता: || 1|| Shri Bhagavan Uvachaparaṁ bhūyaḥ pravakṣhyāmi jñānānāṁ jñānam uttamamyaj jñātvā munayaḥ sarve parāṁ siddhim ito gatāḥ|| 1|| श्रीभगवान् बोले —-ज्ञानों में भी अति उत्तम उस परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब मुनि जन इस संसार से मुक्त्त होकर परम सिद्भि […]

Shloka 6-10

तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् |सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ || 6|| tatra sattvaṁ nirmalatvāt prakāśhakam anāmayamsukha-saṅgena badhnāti jñāna-saṅgena chānagha|| 6|| हे निष्पाप ! उन तीनों गुणों में सत्वगुण तो निर्मल होने के कारण प्रकाश करने वाला और विकार रहित है, वह सुख के सम्बन्ध से और ज्ञान के सम्बन्ध से अर्थात् उसके अभिमान से बांधता है | Arjuna, […]

Shloka 11-15

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते |ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत || 11|| sarva-dvāreṣhu dehe ’smin prakāśha upajāyatejñānaṁ yadā tadā vidyād vivṛiddhaṁ sattvam ity uta|| 11|| जिस समय इस देह में तथा अन्त:करण और इन्द्रियों में चेतनता और विवेक शक्त्ति उत्पन्न होती है, उस समय ऐसा जानना चाहिये कि सत्वगुण बढ़ा है| When the light of true knowledge […]

Shloka 16-20

कर्मण: सुकृतस्याहु: सात्त्विकं निर्मलं फलम् |रजसस्तु फलं दु:खमज्ञानं तमस: फलम् || 16|| karmaṇaḥ sukṛitasyāhuḥ sāttvikaṁ nirmalaṁ phalamrajasas tu phalaṁ duḥkham ajñānaṁ tamasaḥ phalam|| 16|| श्रेष्ठ कर्म का तो सात्विक अर्थात् सुख, ज्ञान और वैराग्यादि निर्मल फल कहा है ; राजस कर्म का फल दुःख एवं तामस कर्म का फल अज्ञान कहा है । The purity […]

Shloka 21-27

अर्जुन उवाच |कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो |किमाचार: कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते || 21|| Arjuna Uvachakair liṅgais trīn guṇān etān atīto bhavati prabhokim āchāraḥ kathaṁ chaitāns trīn guṇān ativartate|| 21|| अर्जुन बोले ! इन तीनों गुणों से अतीत पुरुष किन-किन लक्षणों से युक्त्त होता है और किस प्रकार के आचरणों वाला होता है ; तथा हे प्रभो ! मनुष्य किस उपाय […]

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