Shloka 1-6
अर्जुन उवाच |एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते |ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमा: || 1|| Arjuna Uvachaevaṁ satata-yuktā ye bhaktās tvāṁ paryupāsateye chāpy akṣharam avyaktaṁ teṣhāṁ ke yoga-vittamāḥ|| 1|| अर्जुन बोले- जो अनन्यप्रेमी भक्तजन पूर्वोक्त प्रकारसे निरन्तर आपके भजन-ध्यानमें लगे रहकर आप सगुणरूप परमेश्वरको और दूसरे जो केवल अविनाशी सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्मको ही अतिश्रेष्ठ भावसे भजते हैं […]
Shloka 7-11
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् |भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् || 7|| teṣhām ahaṁ samuddhartā mṛityu-saṁsāra-sāgarātbhavāmi na chirāt pārtha mayy āveśhita-chetasām|| 7|| हे अर्जुन ! उन मुझमें चित्त लगानेवाले प्रेमी भक्तोंका मैं शीघ्र ही मृत्युरूप संसार-समुद्रसे उद्धार करनेवाला होता हूँ| These worshippers’ thoughts are set on Me; hence O Arjuna, I become their saviour from the wheel of birth […]
Shloka 12-20
श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते |ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् || 12|| śhreyo hi jñānam abhyāsāj jñānād dhyānaṁ viśhiṣhyatedhyānāt karma-phala-tyāgas tyāgāch chhāntir anantaram|| 12|| मर्मको न जानकर किये हुए अभ्याससे ज्ञान श्रेष्ठ है; ज्ञानसे मुझ परमेश्वरके स्वरूपका ध्यान श्रेष्ठ है और ध्यानसे भी सब कर्मोंके फलका त्याग श्रेष्ठ है; क्योंकि त्यागसे तत्काल ही परम शान्ति होती है| To gain spiritual […]