Shloka 1-5
अर्जुन उवाच |मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम् |यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम || 1||Arjuna Uvacha ।madanugrahāya paramaṃ guhyamadhyātmasañjñitam ।yattvayōktaṃ vachastēna mōhōyaṃ vigatō mama ॥ 1 ॥अर्जुन बोले—मुझ पर अनुग्रह करने के लिये आपने जो परम गोपनीय अध्यात्म विषयक वचन अर्थात् उपदेश कहा, उससे मेरा यह अज्ञान नष्ट हो गया है |Arjuna thankfully replied: O Lord it is because of […]
Shloka 6-11
पश्यादित्यान्वसून् रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा |बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत || 6|| paśyādityānvasūnrudrānaśvinau marutastathā ।bahūnyadṛṣṭapūrvāṇi paśyāścharyāṇi bhārata ॥ 6 ॥ हे भरतवंशी अर्जुन ! तू मुझ में आदित्यों को अर्थात् अदितिं के द्बादश पुत्रों को, आठ वसुओं को, एकादश रुद्रों को, दोनों अश्विनी कुमारों को और उन्चास मरुदगणों को देख तथा और भी बहुत से पहले न देखे हुए […]
Shloka 12-16
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता |यदि भा: सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मन: || 12|| divi sūryasahasrasya bhavēdyugapadutthitā ।yadi bhāḥ sadṛśī sā syādbhāsastasya mahātmanaḥ ॥ 12 ॥ आकाश में हजार सूर्यो के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्व रूप परमात्मा के प्रकाश के सद्र्श कदाचित् ही हो | The divine radiance and beautiful […]
Shloka 17-21
किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम् |पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद् दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम् || 17|| kirīṭinaṃ gadinaṃ chakriṇaṃ cha tējōrāśiṃ sarvatō dīptimantam।paśyāmi tvāṃ durnirīkṣyaṃ samantāddīptānalārkadyutimapramēyam ॥ 17 ॥ आप को मैं मुकुट युक्त्त, गदा युक्त्त और चक्र युक्त्त तथा सब ओर से प्रकाशमान तेज के पुञ्ज, प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सद्र्श ज्योति युक्त्त, कठिनता से […]
Shloka 22-27
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च |गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे || 22|| rudrādityā vasavō yē cha sādhyā viśvēśvinau marutaśchōṣmapāścha।gandharvayakṣāsurasiddhasaṅghā vīkṣantē tvāṃ vismitāśchaiva sarvē ॥ 22 ॥ जो ग्यारह रूद्र और बारह आदित्य तथा आठ वसु, साध्य गण, विश्वेदेव अश्विनी कुमार तथा मरुदगण और पितरों का समुदाय तथा गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय […]
Shloka 28-32
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगा: समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति |तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति || 28|| yathā nadīnāṃ bahavōmbuvēgāḥ samudramēvābhimukhā dravanti।tathā tavāmī naralōkavīrā viśanti vaktrāṇyabhivijvalanti ॥ 28 ॥ जैसे नदियों के बहुत से जल के प्रवाह स्वाभाविक ही समुद्र के ही सम्मुख दौड़ते हैं अर्थात् समुद्र में प्रवेश करते हैं, वैसे ही वे नरलोक के वीर भी आपके प्रज्वलित […]
Shloka 33-37
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भुङ् क्ष्व राज्यं समृद्धम् |मयैवैते निहता: पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् || 33|| tasmāttvamuttiṣṭha yaśō labhasva jitvā śatrūnbhuṅkṣva rājyaṃ samṛddham।mayaivaitē nihatāḥ pūrvamēva nimittamātraṃ bhava savyasāchin ॥ 33 ॥ अतएव तू उठ ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीत कर धन-धान्य सम्पन्न राज्य को भोग । ये सब शूर वीर पहले ही […]
Shloka 38-43
त्वमादिदेव: पुरुष: पुराणस्-त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् |वेत्तासि वेद्यं च परं च धामत्वया ततं विश्वमनन्तरूप || 38|| tvamādidēvaḥ puruṣaḥ purāṇastvamasya viśvasya paraṃ nidhānam।vēttāsi vēdyaṃ cha paraṃ cha dhāma tvayā tataṃ viśvamanantarūpa ॥ 38 ॥ आप आदि देव और सनातन पुरुष हैं, आप इस जगत् के परम आश्रय और जानने वाले तथा जानने योग्य और परम धाम […]
Shloka 44-48
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायंप्रसादये त्वामहमीशमीड्यम् |पितेव पुत्रस्य सखेव सख्यु:प्रिय: प्रियायार्हसि देव सोढुम् || 44|| tasmātpraṇamya praṇidhāya kāyaṃ prasādayē tvāmahamīśamīḍyam।pitēva putrasya sakhēva sakhyuḥ priyaḥ priyāyārhasi dēva sōḍhum ॥ 44 ॥ अतएव हे प्रभो ! मैं शरीर को भली भांति चरणों में निवेदित कर प्रणाम करके स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना करता […]
shloka 49-55
मा ते व्यथा मा च विमूढभावोदृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम् |व्यपेतभी: प्रीतमना: पुनस्त्वंतदेव मे रूपमिदं प्रपश्य || 49|| mā te vyathā mā cha vimūḍha-bhāvodṛiṣhṭvā rūpaṁ ghoram īdṛiṅ mamedamvyapeta-bhīḥ prīta-manāḥ punas tvaṁtad eva me rūpam idaṁ prapaśhya || 49|| मेरे भयानक रूप को देखकर तुम न तो भयभीत हो और न ही मोहित हो। भयमुक्त और प्रसन्नचित्त होकर […]